ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उच्च सिविल सेवाओं का भारतीयकरण राजनैतिक आंदोलन की प्रमुख मांग बन गई जिसने ब्रिटिश इंडिया गवर्नमेंट को उसकी सेवाओं के लिए राज्य क्षेत्र में एक लोक सेवा आयोग के गठन पर विचार करने पर बाध्य कर दिया . प्रथम लोक सेवा आयोग की स्थापना 1 अक्टूबर , 1926 को हुई . तथापि ,परामर्श देने के इसके सीमित कार्यों से जनता की आशाएं पूरी न हो सकीं तथा हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं द्वारा इस तथ्य पर निरंतर बल दिए जाने के परिणामस्वरूप , भारत सरकार अधिनियम , 1935 के अंतर्गत फैडरल पब्लिक सर्विस कमीशन का गठन किया गया.
इस अधिनियम के अंतर्गत , पहली बार , प्रांतीय स्तर पर लोक सेवा आयोगों के गठन का भी प्रावधान किया गया.
स्वतंत्रता के बाद , संविधान सभा ने अनुभव किया कि सिविल सेवाओं में निष्पक्ष भर्ती सुनिश्चित करने के साथ ही सेवा हितों की रक्षा के लिए संघीय एवं प्रांतीय , दोनों स्तरों पर लोक सेवा आयोगों को एक सुदृढ़ और स्वायत्त स्थिति प्रदान करने की आवश्यकता है . स्वतंत्र भारत के लिए 26 जनवरी , 1950 को नये संविधान के प्रवर्तन के साथ ही फैडरल पब्लिक सर्विस कमीशन को एक स्वायत्त सत्ता के रूप में संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और संघ लोक सेवा आयोग का नाम दिया गया .
संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना भारत के संविधान के अनुच्छेद 315 के अंतर्गत की गई है . आयोग में एक अध्यक्ष और दस सदस्य हैं.उच्च सिविल सेवाओं का भारतीयकरण राजनैतिक आंदोलन की प्रमुख मांग बन गई जिसने ब्रिटिश इंडिया गवर्नमेंट को उसकी सेवाओं के लिए राज्य क्षेत्र में एक लोक सेवा आयोग के गठन पर विचार करने पर बाध्य कर दिया . प्रथम लोक सेवा आयोग की स्थापना 1 अक्टूबर , 1926 को हुई . तथापि ,परामर्श देने के इसके सीमित कार्यों से जनता की आशाएं पूरी न हो सकीं तथा हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं द्वारा इस तथ्य पर निरंतर बल दिए जाने के परिणामस्वरूप , भारत सरकार अधिनियम , 1935 के अंतर्गत फैडरल पब्लिक सर्विस कमीशन का गठन किया गया.
इस अधिनियम के अंतर्गत , पहली बार , प्रांतीय स्तर पर लोक सेवा आयोगों के गठन का भी प्रावधान किया गया.
स्वतंत्रता के बाद , संविधान सभा ने अनुभव किया कि सिविल सेवाओं में निष्पक्ष भर्ती सुनिश्चित करने के साथ ही सेवा हितों की रक्षा के लिए संघीय एवं प्रांतीय , दोनों स्तरों पर लोक सेवा आयोगों को एक सुदृढ़ और स्वायत्त स्थिति प्रदान करने की आवश्यकता है . स्वतंत्र भारत के लिए 26 जनवरी , 1950 को नये संविधान के प्रवर्तन के साथ ही फैडरल पब्लिक सर्विस कमीशन को एक स्वायत्त सत्ता के रूप में संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और संघ लोक सेवा आयोग का नाम दिया गया .
आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा संबंधी शर्तें संघ लोक सेवा आयोग(सदस्य)विनियमावली , 1969 द्वारा नियंत्रित होती हैं .
आयोग का एक सचिवालय है , जो दो अपर सचिवों , कई संयुक्त सचिवों , उपसचिवों तथा अन्य सहयोगी स्टाफ सहित सचिव की अध्यक्षता में कार्य करता है.
संघ लोक सेवा आयोग को संविधान के अंतर्गत निम्नलिखित कार्य एवं भूमिका सौंपी गई हैं:-
1. संघ के अधीन सेवाओं और पदों पर प्रतियोगिता परीक्षाओं के आयोजन के माध्यम से भर्ती ;
2. केंद्र सरकार के अधीन सेवाओं तथा पदों पर साक्षात्कार के माध्यम से चयन द्वारा भर्ती ;
3. पदोन्नति पर नियुक्ति के साथ-साथ प्रतिनियुक्ति पर स्थानांतरण के लिए अधिकारियों की उपयुक्तता पर परामर्श देना ;
4. विभिन्न सेवाओं तथा पदों पर भर्ती की पद्धति से सम्बध्द सभी मामलों पर सरकार को परामर्श देना ;
5. विभिन्न सिविल सेवाओं से सम्बध्द अनुसानिक मामले ; और
6. असाधारण पेंशन प्रदान करने ; विधिक व्यय आदि की प्रतिपूर्ति से संबंधित विविध मामले .
आयोग की मुख्य भूमिका है-केंद्र तथा राज्यों(अर्थात् अखिल भारतीय सेवा) के लिए सामान्य विभिन्न केंद्रीय सिविल सेवाओं तथा पदों एवं सेवाओं में नियुक्ति के लिए व्यक्तियों का चयन करना.
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आयोग के कार्य एवं भूमिका की ओर
भारत के संविधान के अनुच्छेद 320 के अंतर्गत , आयोग से , अन्य बातों के साथ-साथ , सिविल सेवाओं तथा पदों पर भर्ती संबंधी सभी मामलों पर परामर्श लेना अपेक्षित है
निम्नलिखित तीन पध्दतियों में से एक द्वारा भर्ती की जाती है:
- सीधी भर्ती ;
- पदोन्नति ; और
- स्थानांतरण
1. प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा भर्ती
2. सक्षात्कार के माध्यम से चयन द्वारा भर्ती
प्रतियोगिता परीक्षा द्वारा भर्ती
संविधान के अंतर्गत , आयोग का एक कार्य है , संघ की सिविल सेवाओं/पदों पर नियुक्ति के लिए परीक्षाएं आयोजित करना . इसके अतिरिक्त , आयोग द्वारा रक्षा मंत्रालय के साथ आयोजन करके राष्ट्रीय रक्षा अकादमी , भारतीय सैन्य अकादमी , नौसेना अकादमी , वायु सेना अकादमी तथा अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी के माध्यम से कतिपय रक्षा सेवाओं में प्रवेश के लिए प्रतियोगिता परीक्षाएं भी आयोजित की जाती हैं .
आयोग अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिवर्ष सामान्यत: दर्जनों परीक्षाएं आयोजित करता है . इनमें सिविल सेवा , इंजीनियरी , चिकित्सा एवं वन सेवा आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी सेवाओं/पदों पर भर्ती के लिए परीक्षाएं शामिल हैं .
आयोग द्वारा नियमित रूप से आयोजित परीक्षाओं पर एक नज़र डालने के लिए इस अध्याय में परीक्षाओं पर एक नज़र शीर्षक देखिए .
फिलहाल , संघ लोक सेवा आयोग देश भर में स्थित 42 नियमित केंद्रों पर अपनी परीक्षाएं आयोजित कर रहा है .
चयन द्वारा भर्तीआयोग अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिवर्ष सामान्यत: दर्जनों परीक्षाएं आयोजित करता है . इनमें सिविल सेवा , इंजीनियरी , चिकित्सा एवं वन सेवा आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी सेवाओं/पदों पर भर्ती के लिए परीक्षाएं शामिल हैं .
आयोग द्वारा नियमित रूप से आयोजित परीक्षाओं पर एक नज़र डालने के लिए इस अध्याय में परीक्षाओं पर एक नज़र शीर्षक देखिए .
फिलहाल , संघ लोक सेवा आयोग देश भर में स्थित 42 नियमित केंद्रों पर अपनी परीक्षाएं आयोजित कर रहा है .
चयन द्वारा भर्ती निम्नलिखित पध्दतियों द्वारा की जाती है:
1. केवल साक्षात्कार द्वारा
2. भर्ती परीक्षण के बाद साक्षात्कार द्वारा
केवल साक्षात्कार द्वारा 1. केवल साक्षात्कार द्वारा
2. भर्ती परीक्षण के बाद साक्षात्कार द्वारा
जहां आवेदकों की संख्या बहुत अधिक होती है , वहां निर्धारित न्यूनतम पात्रता शर्तों को पूरा करने वाले सभी आवेदकों को साक्षात्कार के लिए बुला पाना व्यवहार्य नहीं होता है . इसलिए , आयोग संबध्द कार्य से संबंधित कतिपय पूर्व - निर्धारित मानदंडों के आधार पर साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने वाले उम्मीदवारों की छंटनी करता है . आयोग द्वारा भर्ती संबंधी अधिकतर मामलों पर उपर्युक्त पध्दति(1)द्वारा कार्रवाई की जाती है .
लिखित परीक्षण के बाद साक्षात्कार द्वारा इस श्रेणी में दो प्रकार की प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं :
क. उम्मीदवारों की योग्यता परखने के लिए वस्तुनिष्ठ लिखित और/या व्यावहारिक परीक्षण के बाद साक्षात्कार किया जाता है और तत्पचात् साक्षात्कार द्वारा अंतिम चयन किया जाता है , जिसमें उम्मीदवारों के लिखित परीक्षण और / या व्यावहारिक परीक्षण में निष्पादन का योगदान रहता है .
ख. साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किए जाने वाले उम्मीदवारों को परखने के लिए वस्तुनिष्ठ लिखित और / या व्यावहारिक परीक्षण / अंतिम चयन केवल साक्षात्कार द्वारा किया जाता है .
पदोन्नति और प्रतिनियुक्ति पर स्थानांतरण / स्थानांतरण द्वारा नियुक्ति
सरकार द्वारा आयोग के परामर्श से निर्णीत प्रक्रिया के अनुसार , आयोग के अध्यक्ष अथवा कोई सदस्य विभागीय पदोन्नति समिति की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं जिनमें चयन द्वारा की जाने वाली पदोन्नतियों में ग्रुप 'ख 'से ग्रुप 'क' तथा ग्रुप 'क' में ही एक ग्रेड से दूसरे ग्रेड में पदोन्नतियों पर विचार किया जाता है .
प्रतिनियुक्तिबहुत से पदो के भर्ती नियमों में , प्रतिनियुक्ति पर स्थानांतरण (अल्पकालिक संविदा सहित) तथा स्थानांतरण द्वारा नियुक्ति का प्रावधान है . विचाराधीन क्षेत्र में केंद्र सरकार के अधिकारियों के साथ-साथ राज्य सरकार के अधिकारियों के भी शामिल होने पर , किसी अधिकारी के चयन से पूर्व आयोग का परामर्श आवश्यक है . जब विचाराधीन क्षेत्र को और व्यापक बना दिया जाता है और उसमें न केवल केंद्र / राज्य सरकार के अधिकारी , बल्कि गैर-सरकारी संस्थाओं के अधिकारी भी शामिल होते हैं , तो चयन संघ लोक सेवा आयोग के परामर्श से किया जाना होता है .
अखिल भारतीय सेवाएं अधिनियम , 1951 और उसके अंतर्गत बनाए गए नियम एवं विनियम
अखिल भारतीय सेवा अर्थात् प्रशासनिक सेवा , भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा से संबंधित भर्ती एवं सेवा शर्तों को विनियमित करते हैं .
जहां तक भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा भारतीय पुलिस सेवा परीक्षा में सीधी भर्ती का संबंध है , यह आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से की जाती है और भारतीय वन सेवा के लिए यह भर्ती भारतीय वन सेवा परीक्षा के माध्यम से की जाती है.
संगत नियम एवं विनियमों में यह व्यवस्था है कि भा.प्र.से./भा.पु.से./भा.व.से. की रिक्तियों का 33% आयोग के परामर्श से राज्य की सेवा के अधिकारियों में से भरा जाना चाहिए . चयन समिति की अध्यक्षता आयोग के अध्यक्ष/सदस्य करते हैं जिसमें केंद्रीय सरकार तथा राज्य के वरिष्ठ सरकारी प्रतिनिधि होते हैं .
अखिल भारतीय सेवा अर्थात् प्रशासनिक सेवा , भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा से संबंधित भर्ती एवं सेवा शर्तों को विनियमित करते हैं .
जहां तक भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा भारतीय पुलिस सेवा परीक्षा में सीधी भर्ती का संबंध है , यह आयोग द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से की जाती है और भारतीय वन सेवा के लिए यह भर्ती भारतीय वन सेवा परीक्षा के माध्यम से की जाती है.
संगत नियम एवं विनियमों में यह व्यवस्था है कि भा.प्र.से./भा.पु.से./भा.व.से. की रिक्तियों का 33% आयोग के परामर्श से राज्य की सेवा के अधिकारियों में से भरा जाना चाहिए . चयन समिति की अध्यक्षता आयोग के अध्यक्ष/सदस्य करते हैं जिसमें केंद्रीय सरकार तथा राज्य के वरिष्ठ सरकारी प्रतिनिधि होते हैं .
आयोग ने हाल ही में सम्पेरा ( स्क्रीनिंग एंड मैकनाइज्ड प्रोसैसिंग ऑफ एग्जामिनोन्स एंड रिक्रूटमेंट एप्लीकोन्स ) नाम की परियोजना प्रारंभ की है. सभी परीक्षाओं के लिए एक सरलीकृत एकल पत्रक सामान्य आवेदन प्रपत्र तैयार किया गया है जिसकी ओ. एम. आर. /आई.सी.आर. तकनीक का इस्तेमाल करके स्कैनिंग की जाएगी . इस परियोजना के कार्यान्वयन से हाथ से किए जाने वाले कार्य को समाप्त करके प्रपत्रों से आंकड़ों की तीव्र गति से जांच करने में मुख्य रूप से सहायता मिलेगी . इसके अन्य लाभ होंगे - प्रवेश पत्रों , फोटो प्रतिकृति सहित उपस्थिति सूचियों तथा प्रत्येक उम्मीदवार के हस्ताक्षर की अनुलिपि एवं संदिग्ध मामलों की त्रुटिरहित सूची शाीघ्र तैयार कर सकना . इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य नई प्रक्रिया तथा यंत्रीकृत कार्रवाई के द्वारा आवेदन - पत्रों की बढ़ती हुई संख्या से निपट सकना है , ताकि उन पर कार्रवाई करने में लगने वाले समय को कम किया जा सके तथा सूचना तेजी से भेजी जा सके . छद्मरूपण/कदाचारों के मामले भी समाप्त होंगे तथा अपव्यय कम होगा
संघ लोक सेवा आयोग( परामर्श से छूट) विनियमावली , 1958 के उपबंधों के साथ पठित संविधान के अनुच्छेद 320 में अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार , भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में सभी ग्रुप क तथा ख पदो के भर्ती नियमों को आयोग के परामर्श से तैयार किया जाना अपेक्षित है . अनुच्छेद 321 के उपबंधों के अनुसरण में , संसद द्वारा बनाए गए संगत अधिनियमों के अंतर्गत , कर्मचारी राज्य बीमा निगम , दिल्ली नगर निगम , नई दिल्ली नगर पालिका परिषद , कर्मचारी भविष्य निधि संगठन आदि के अधीन कतिपय श्रेणियों के पदों के लिए भर्ती नियमों को तैयार / संशोधित करने के लिए भी आयोग के साथ परामर्श करना आवयक है.
भर्ती नियमों के गठन/संशोधन के सभी प्रस्तावों पर संगठन की संवर्ग संरचना और सरकार द्वारा समय समय पर जारी किए परिपत्रों को ध्यान में रखते हुए गौर किया जाता है .
स्वीकृति प्राप्त होने के बाद , इस मामले में आयोग की सलाह को संबंधित मंत्रालय/विभाग को संप्रेषित कर दिया जाता है . अब तक 14000 से अधिक भर्ती नियम गठित/संशोधित किए जा चुके हैं
अनुशासनिक मामले
संविधान के अनुच्छेद 320 (3) के अंतर्गत सिविल क्षमता में भारत सरकार के अधीन सेवारत व्यक्ति को प्रभावित करने वाले अनुशासनिक मामलों में शास्तियों की प्रमात्रा के संबंध में आयोग से परामर्श करना अपेक्षित है.
स्थानीय निकायों आदि तक कार्यों का विस्तार
अनुच्छेद 321 संसद को विधि अथवा किसी लोक संस्था द्वारा गठित किसी भी स्थानीय प्राधिकरण या अन्य निगमित निकाय तक लोक सेवा आयोग के कार्यों का विस्तार करने की शक्ति प्रदान करता है.
छूट
कुछ ऐसे पदों को विमुक्त रखने के लिए जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा या अन्य किसी कारण से आयोग को उसके परामर्श के लिए भेजना अपेक्षित नहीं हो , संविधान के अनुच्छेद 320(3)(क) तथा(ख) के अंतर्गत 1 सितम्बर , 1958 को संघ लोक सेवा आयोग(परामर्श से छूट) अधिनियम जारी किया गया . ये अधिनियम जब और जैसी आवश्यकता पड़ती है , उसके अनुसार संशोधित या परिशोधित किए जाते हैं .
सेवा में भर्ती व उसकी शर्तें आदि
संविधान के अनुच्छेद 309 व अनुच्छेद 311 में निहित उपबंधों को भी संविधान के अनुच्छेद 320 में निहित उपबंधों के साथ पढ़ा जाना अपेक्षित है .
आयोग की सलाह की बाध्य प्रकृति
भारत सरकार द्वारा एक परंपरा स्थापित की गई है कि आयोग को भेजे गए निम्नलिखित श्रेणी के मामलों में , कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर उनके द्वारा की गई अनुशंसाएं स्वीकार की जाएंगी .
( क ) अर्ध्द - न्यायिक मामले
( ख ) उम्मीदवारों की नियुक्ति हेतु चयन
( ग ) पदो के न्यूनतम वेतन की जगह उम्मीदवारों की उच्चतर प्रारंभिक वेतन पर नियुक्ति
( घ ) सरकारी सेवक द्वारा अपने दायित्वों के निर्वहन में किए गए कार्यों अथवा किए जाने वाले कार्यों के संबंध में उसके विरूध्द की गई विधिक कार्यवाहियों के प्रतिवाद में उसके द्वारा किए गए व्यय के दावे
वार्षिक रिपोर्ट
संविधान के अनुच्छेद 323 के अंतर्गत आयोग का यह दायित्व है कि वह अपने द्वारा किए गए कार्यों की एक रिपोर्ट हर वर्ष राष्ट्रपति को प्रस्तुत करें तथा ऐसी रिपोर्ट की प्राप्ति पर , राष्ट्र्पति उसकी एक प्रति ऐसे मामलों के संबंध में , यदि कोई हों , जिसमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई , ऐसी अस्वीकृति का कारण स्पष्ट करने वाले ज्ञापन के साथ संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेंगे